इसमें तो कोई शक़ नहीं है कि ज़्यादातर देशों में बुनियादी ढाँचा, सुविधाएँ, कामकाज और रोज़गार के साधन और अवसर, शहरी इलाक़ों में ज़्यादा बेहतर होते हैं.
इसलिए ज़्यादातर लोग ग्रामीण इलाक़ों को छोड़कर शहरी इलाक़ों में बसना पसन्द करते हैं.
कई बार ये उनकी मजबूरी भी बन जाती है. इसी चलन का आकलन करके संयुक्त राष्ट्र ने एक ताज़ा रिपोर्ट जारी की है जिसमें अनुमान लगाया गया है कि इस शताब्दी का आधा हिस्सा पूरा होने तक दुनिया भर की तकरीबन दो तिहाई आबादी शहरी इलाक़ों में रह रही होगी.
बुधवार को जारी ये रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण इलाक़ों की अनदेखी यानी उपेक्षा और जनसंख्या बढ़ने के पहलुओं की वजह से आने वाले कुछ दशकों के दौरान क़रीब ढाई अरब लोग शहरी इलाक़ों में और जुड़ जाएंगे.
रिपोर्ट कहती है कि शहरी इलाक़ों की तरफ़ रुख़ करने वाले लोगों की ज़्यादा बड़ी संख्या भारत, चीन और नाईजीरिया जैसे देशों में पाई जाएगी.
ध्यान रहे कि दुनिया भर की कुल शहरी आबादी का क़रीब 35 फ़ीसदी हिस्सा इन तीन देशों में रहता है.
इसके अलावा इस तरफ़ भी ध्यान दिलाया गया है कि साल 2030 तक ही पृथ्वी पर क़रीब 43 ऐसे विशाल शहर यानी मेगासिटीज़ हो जाएंगे जिनकी आबादी अलग-अलग एक करोड़ से भी ज़्यादा होगी.
इस लिस्ट में अभी तक टोकयो का भी नाम शामिल है जहाँ क़रीब तीन करोड़ 70 लाख लोग रहते हैं.
उसके बाद क़रीब दो करोड़ 90 लाख लोगों के साथ नई दिल्ली का नाम आता है.
तीसरे नम्बर पर शंघाई है जिसकी आबादी क़रीब दो करोड़ 60 लाख है.
इन शहरों के बाद मैक्सिको सिटी, साओ पाउलो के नाम आते हैं जिनकी आबादी अलग-अलग क़रीब दो करोड़ 20 लाख है.
शहरी आबादी के स्थिति पर ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग DESA ने तैयार की है.
इसमें कहा गया है कि इस रुझान को देखते हुए शहरी इलाक़ों की बेहतर और टिकाऊ प्लानिंग की ज़रूरत है जिसमें बढ़ती आबादी की विभिन्न ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक सेवाएँ, सुविधाएँ और संसाधन सुनिश्चित किए जा सकें.