वहाँ तबाही के निशान, नरक के समान

महबूब ख़ान, संयुक्त राष्ट्र रेडियो

सीरिया के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से में संघर्ष और युद्ध और गम्भीर और ज़्यादा ख़तरनाक़ होता जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायताकर्मियों का कहना है कि इस वजह से दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से में बहुत बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो रहे हैं.

सीरिया में साल 2011 में युद्ध शुरू होने के बाद से इसे सबसे बड़ा विस्थापन कहा जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि सीरिया की सरकारी सेनाओं ने 20 जून से डेरा गवर्नरेट में विपक्षी लड़ाकों के ख़िलाफ़ व्यापक सैनिक अभियान चलाया हुआ है तब से वहाँ से क़रीब दो लाख 70 हज़ार लोग अपना घर छोडने को मजबूर हो गए हैं.

सरकारी सेनाओं ने इन हमलों में बमबारी और ज़मीनी लड़ाई का सहारा लिया है.

इस लड़ाई से प्रभावित हो रहे लोगों की मदद के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम WFP ने लोगों को खाना-पानी उपलब्ध कराना शुरू किया है जो क़रीब महीने भर तक उनका काम चला सकता है.

विश्व खाद्य कार्यक्रम की प्रवक्ता बेटीना लुएशेर का कहना था कि साल 2011 में युद्ध शुरू होने के बाद से दक्षिणी इलाक़े में लोगों का ये सबसे बड़ा विस्थापन है.

उनका ये भी कहना था कि इस हिंसा की वजह से विश्व खाद्य कार्यक्रम के लिए काम करने वाले लोग भी विस्थापित हो गए हैं जिससे भविष्य में प्रभावित लोगों को ज़रूरी सामान मुहैया कराने में मुश्किलें पैदा होने की सम्भावना बढ़ गई है.

प्रवक्ता कहना था कि इस वजह से प्रभावित लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संगठन की क्षमता और सीमाएँ सीमित हो गए हैं इसलिए खाने-पीने की चीज़ें और अन्य ज़रूरी सामान समय पर पहुँचाने के लिए अन्य संसाधनों की तलाश की जा रही है.

फ़लस्तीनी कैम्प तबाह

इस बीच सीरिया की राजधानी दमिश्क के पास यरमूक स्थित एक फ़लस्तीनी शरणार्थी कैम्प युद्ध में लगभग पूरी तरह तबाह हो गया है.

 

इस शिविर की हालत को संयुक्त राष्ट्र की राहत और बचाव कार्य एजेंसी UNRWA के अध्यक्ष पीयर क्रेहेनबुहल ने इतना तबाह हो चुका स्थान बयान किया है जितना उन्होंने कभी नहीं देखा.

पियर क्रेहेनबुहल ने हाल ही में यरमूक स्थित फ़लस्तीनी शिविर का दौरा किया था.

वो संयुक्त राष्ट्र के ऐसे पहले वरिष्ठ अधिकारी हैं जिन्हें उस इलाक़े में जाने की इजाज़त मिली.

यरमूक फ़लस्तीनी शिविर में किसी वक़्त क़रीब एक लाख 60 हज़ार तक लोग रहते थे लेकिन अब वहाँ भारी तबाही के निशान हैं.

UNRWA के प्रवक्ता क्रिस गुन्नेस ने पियर क्रेहेनबुहल की यरमूक यात्रा का और ब्यौरा देते हुए कहा, “यरमूक नरक का नमूना पेश करता है जहाँ हर तरफ़ भारी तबाही के निशान मौजूद हैं, जैसाकि हमारे Commissioner General पियर क्रेहेनबुहल का कहना है कि – यरमूक अब भारी तबाही और बर्बादी के ढेर में ज़िन्दगी के निशानों को सहेजने की कोशिश कर रहा है.”

“उनके शब्दों में कहें तो, जिस तरफ़ भी नज़र जाती है लोगों की तकलीफ़ों और नरक जैसे हालात का सामना करने के निशान नज़र आते हैं.”

“यरमूक में एक बहुत कामयाब और ख़ुशहाल समुदाय रहता था जिसमें हर आर्थिक पृष्ठभूमि के फ़लस्तीनी लोग तमाम वर्गों से सम्बद्ध सीरियाई लोगों के साथ ख़ुशहाली के साथ रहते थे. लेकिन गहरे अफ़सोस की बात है कि युद्ध ने वो ख़ुशहाली और समुदाय सब तबाह कर दिया है.”

यरमूक से विस्थापित होने वाले कुछ लोग याल्दा पहुँचे हैं.

एजेंसी के मुखिया पियर क्रेहेनबुहल ने याल्दा का भी दौरा करके हालात का जायज़ा लिया.

एजेंसी वहाँ भी लोगों को ज़रूरी सामान और भोजन-पानी मुहैया करा रही है.

एजेंसी के मुखिया ने राजधानी दमिश्क के दक्षिणी हिस्से में स्बीनेह स्थित शिविर का भी दौरा किया जहाँ एजेंसी ने फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए स्कूल, क्लीनिक और सामुदायिक केन्द्र बहाल किए हैं.