महबूब ख़ान, संयुक्त राष्ट्र रेडियो
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि दक्षिण कोरिया वैसे तो दुनिया भर की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है मगर वहाँ अब भी बहुत बड़ी संख्या में लोग बहुत ख़राब मकानों में रहने को मजबूर हैं.
बहुत से लोगों के लिए तो घरों का किराया देना भी बहुत मुश्किल साबित हो रहा है जो तेज़ी से बढ़ता देखा गया है.
लोगों को उचित गुणवत्ता वाले मकानों की उपलब्धता के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्टियर लैलानी फ़रहा का ये भी कहना है कि दक्षिण कोरिया अब उन अनेक विकसित देशों की क़तार में सबसे आगे पहुँच गया है जहाँ आम लोगों पर अपने घरों के लिए काफ़ी बड़ा क़र्ज़ रहता है.
लैलानी फ़रहा ने दक्षिण कोरिया में मकानों की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए दस दिन तक दौरा किया.
इस मिशन के दौरान उन्होंने ये देखने की कोशिश की कि क्या दक्षिण कोरिया में लोग जिन मकानों रहते हैं, उनमें बुनियादी सुविधाएँ भी मौजूद हैं या नहीं.
दक्षिण कोरिया को कोरिया गणराज्य भी कहा जाता है.
दस दिन के इस दौरे के बाद उनका कहना था कि बहुत से लोग बहुत छोटे-छोटे स्थानों वाले मकानों में रहने को मजबूर हैं और ये मकान पाँच गुना पाँच मीटर से भी छोटे होते हैं.
ये मकान बहुत कम समय के लिए किराए पर दिए जाते हैं और मकान मालिक जब चाहे अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ किराया बढ़ा देते हैं.
हालाँकि उनका कहना था कि दक्षिण कोरिया की सरकार मकानों और किराएदारों की स्थिति सुधारने के लिए अथक प्रयास कर रही है मगर बड़े-बड़े निर्माण कार्यों की वजह से लोगों के हालात और ख़राब हो रहे हैं.
विशाल परियोजनाओं के निर्माण की वजह से बहुत से इलाक़ों का रूप बिगड़ रहा है और बहुत से लोगों और परिवारों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ रहा है.
लैलानी फ़रहा ने चिन्ता जताते हुए कहा कि दक्षिण कोरिया के ज़्यादातर शहरी इलाक़े युवाओं और कम आदमनी वाले लोगों के लिए स्वास्थ्यजनक तरीक़े से रहने लायक़ नहीं बचे हैं.
उन्होंने दक्षिण कोरियाई सरकार का आहवान करते हुए कहा कि उसे पूरे देश में रहने के लिए उचित मकानों की व्यवस्था करने वाली ऐसी ठोस योजना बनानी होगी जिसमें लोगों के बुनियादी अधिकारों का भी ख़याल रखा जाए.