मानवाधिकार के लिए आवाज़ उठाने वाले

महबूब ख़ान, संयुक्त राष्ट्र रेडियो

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय OHCHR ने सऊदी अरब में अनेक मानवाधिकार और सिविल लिबर्टीज़ कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी की आलोचना की है.

सऊदी सरकार से इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बन्दी बनाकर रखे गए स्थानों के बारे में जानकारी देने का भी अनुरोध किया गया है.

साथ ही अगर उन पर कोई आरोप हैं तो उन्हें निष्पक्ष न्यायिक और अदालती प्रक्रिया की सुविधा मिलनी चाहिए.

ग़ौरतलब है कि गिरफ़्तार किए गए कम से कम 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में अनेक महिलाएं भी हैं. इन्हें 15 मई को गिरफ़्तार किया गया था.

मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि बाद में ऐसी ख़बरें आईं कि चार महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया गया था.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने जिनेवा में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अब भी छह महिलाएँ और तीन पुरुष सऊदी अधिकारियों की हिरासत में हैं.

इनमें से एक महिला को तो इस तरह हिरासत में रखा गया है कि उसका कोई अता-पता नहीं है और ना ही किसी भी तरीक़े से उससे सम्पर्क किया जा सकता है.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने सऊदी सरकार से आग्रह करते हुए कहा, “हम सऊदी अरब सरकार के अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि गिरफ़्तार की गई महिलाओं का पता-ठिकाना सार्वजनिक किया जाए. साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाए कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के नागरिक अधिकारों की गारंटी रहे जिनमें उन्हें न्यायिक और अदालती प्रक्रिया की सुविधा मिले.”

“उन्हें ये जानने का भी हक़ दिया जाए कि उन्हें किन कारणों से गिरफ़्तार किया गया है, उनके ख़िलाफ़ क्या आरोप लगाए गए हैं. साथ ही उन्हें अपनी पसन्द के वकील के ज़रिए अपनी बात अदालत में रखने की भी इजाज़त मिले.”

इसके अलावा इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने परिवारों से भी मिलने का मौक़ा दिया जाने की भी माँग की गई है.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल का ये भी कहना था कि “इन्हें अपनी गिरफ़्तारियों को क़ानून द्वारा स्थापित सक्षम, स्वतंत्र और निष्पक्ष अदालत या ट्राइब्यूनल में चुनौती देने का भी अधिकार दिया जाए. और अगर उन पर किन्हीं आरोपों के तहत मुक़दमा भी चलाया जाता है तो उस मुक़दमे को कम से कम सम्भव समय में निबटाया जाए.”

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियों को भ्रम पैदा करने वाला घटनाक्रम बताया.

उनका कहना है कि एक तरफ़ तो सऊदी सरकार सामाजिक सुधारों के ज़रिए अनेक पाबन्दियों को हटाने के संकेत दे रही है वहीं दूसरी तरफ़ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस तरह गिरफ़्तार करना कैसे सही ठहराया जा सकता है.

ग़ौरतलब है कि नए सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने हाल के महीनों में कुछ सामाजिक सुधार करने के संकेत दिए हैं.

इन सुधारों में महिलाओं को अब कार चलाने यानी ड्राइविंग की इजाज़त दिए जाने की बात की जा रही है.

साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए सिनेमाघर खोले जाएंगे.

साथ ही विज़न 2030 नामक पहल के तहत अनेक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने का लक्ष्य भी रखा गया है.