मयनमार में हिंसा से बचने के लिए भागकर बांग्लादेश पहुँचे क़रीब 10 लाख Refugees यानी शरणार्थियों को मॉनसून में हैज़ा से बचाने के लिए टीके लगाने का अभियान चलाया गया है.
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी WHO ने मंगलवार को चेतावनी जारी करते हुए कहा कि अभी हैज़ा का ख़तरा टला नहीं है.
रोहिंग्या शरणार्थियों का संकट अगस्त 2017 में तब शुरू हुआ था जब मयनमार के रख़ाइन स्टेट में सेना और सुरक्षा बलों की हिंसा से बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की तरफ़ भागे थे.
अभी तक क़रीब सात लाख लोग मयनमार के रख़ाइन स्टेट से बांग्लादेश पहुँच चुके हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपात अभियानों के मुखिया डॉक्टर रिचर्ड ब्रेन्नन ने रोहिंग्या रेफ़्यूजीज़ के हालात की गम्भीरता के बारे में बताते हुए कहा कि अभी समस्याएँ और ख़तरे टले नहीं हैं.
“बांग्लादेश में पनाह लेने को मजबूर हुए रोहिंग्या शरणार्थियों के स्वास्थ्य और अस्तित्व के लिए अभी बहुत से बहुत से ख़तरे बरक़रार हैं.”
उनका कहना था, “इन शरणार्थियों की बड़ी संख्या अब भी ऐसे अस्थाई शिविरों या स्थानों में रहने को मजबूर है जहाँ क्षमता से ज़्यादा भीड़ है. साथ इन शिविरों में साफ़-सफ़ाई रख पाना भी बहुत मुश्किल काम साबित हो रहा है.”
“इन सबके बावजूद अब मॉनसून की वजह से बारिशी तूफ़ान और बाढ़ आने और ज़मीन धँसने का भी ख़तरा बढ़ गया है.”
संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि पीने के लिए मुहैया कराए जाने वाले पानी की सफ़ाई सुनिश्चित करके और साथ ही तमाम शिविरों में गन्दगी फैलने से रोकने के प्रयासों के ज़रिए हैज़ा और पानी की गन्दगी से होने वाली बीमारियों को रोकने में ठोस मदद मिल सकती है.
उनका ये भी कहना था कि भविष्य में रोहिंग्या समुदायों की मयनमार वापसी के लिए सुरक्षित, स्वैच्छिक और सम्मानजनक हालात पैदा करना बहुत ज़रूरी है.