संयुक्त राष्ट्र ने मयनमार की एक अदालत के उस फ़ैसले की आलोचना की है जिसमें समाचार एजेंसी रॉयटर्स के दो पत्रकारों को गोपनीय क़ानून का उल्लंघन करने का दोषी क़रार दिया गया है.
ये पत्रकार रख़ाइन स्टेट में हिंसा और दंगों की जाँच-पड़ताल करके अपनी रिपोर्टें तैयार करने की कोशिश कर रहे थे कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.
रॉयटर्स के इन रिपोर्टरों के नाम हैं – वा लोन और क्याव सोई ओऊ.
इन दोनों पत्रकारों को 1923 के सरकारी गोपनीयता क़ानून यानी Official Secrets Act के तहत दोषी क़रार देते हुए सज़ा सुनाई गई है.
इस क़ानून के तहत इन्हें 14 साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है.
जबकि संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन पत्रकारों को तुरन्त रिहा किए जाने की माँग की है.
इन दोनों पत्रकारों को दिसम्बर 2017 में गिरफ़्तार किया गया था और उन पर सोमवार को ये आरोप निर्धारित किए गए कि उन्होंने सरकारी सूचनाओं के गोपनीय दस्तावेज़ हासिल किए थे.
इन पत्रकारों ने सितम्बर में दिन्न नामक गाँव में दस रोहिंज्या मुसलमानों की हत्याएँ किए जाने की घटनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की थी.
इस जानकारी में रॉयटर्स ने कहा था कि कम से कम दो रोहिंज्या मुसलमानों को उनके बौद्ध पड़ोसियों ने धारदार हथियारों का इस्तेमाल करके मार दिया था.
उनके अलावा कुछ अन्य रोहिंज्या मुसलमानों की भी मयनमार के सुरक्षा बलों ने गोलीमार कर हत्या कर दी थी.
तभी रख़ाइन स्टेट में बहुत बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी जिसके बाद बहुत बड़े पैमाने पर रोहिंज्या लोगों का मयनमार से पलायन शुरू हो गया था.
ग़ौरतलब है कि क़रीब सात लाख रोहिंज्या लोग सुरक्षा के लिए बांग्लादेश पहुँचे हुए हैं.
मयनमार के लिए स्पेशल रैपोर्टैयर्स यंघी ली और डेविड केय ने मयनमार सरकार के अधिकारियों से इन पत्रकारों को तुरन्त रिहा करने की अपील की है.
साथ ही उन पर लगाए गए तमाम आरोपों को भी वापिस लेने की अपील की गई है.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि इन पत्रकारों पर इस तरह से मुक़दमा चलाए जाने से मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए की जाने वाली खोजी पत्रकारिता को ही अपराध की श्रेणी में धकेल दिया गया है.
जबकि ये ऐसे मामले हैं जिनमें आम लोगों की बहुत रुचि रहती है क्योंकि ये इंसानियत से जुड़े मुद्दे होते हैं.