एक नए अध्ययन में पाया गया है कि एच आई वी एड्स से पीड़ित लोगों को जीविका चलाने के लिए अपने कामकाज करने और उन्हें बचाए रखने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ता है.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन – ILO द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि एच आई वी से पीड़ित लोगों को रोज़गार हासिल करने के प्रक्रिया के दौरान भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
ये ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि इसी भेदभाव की वजह से एच आई वी से पीड़ित लोगों की बड़ी संख्या बेरोज़गार है.
विभिन्न देशों में इनकी संख्या भी अलग-अलग है.
यूगांडा में किए गए सर्वे में पाया गया कि एच आई वी से संक्रमित लोगों की क़रीब 7 फ़ीसदी संख्या बेरोज़गार है.
जबकि होंडूरास में ये संख्या 61 प्रतिशत है.
ख़ासतौर से एच आई वी से पीड़ित युवाओं की ज़्यादा संख्या बेरोज़गार है.
संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता स्टीफ़न दुजारिक का कहना था, “इस रिपोर्ट में एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी ये सामने आई है कि बहुत से लोगों को कामकाज और रोज़गार मिलने के बाद उसे सिर्फ़ अपने एचआईवी संक्रमण की वजह से गँवाना पड़ रहा है.”
“बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपने एच आई वी संक्रमण या बीमारी को रोज़गार देने वाली कम्पनियों या संस्थानों को बताने में झिझकते हैं. यहाँ तक कि बहुत से लोग तो अपने साथियों और दोस्तों को भी बताने से कतराते हैं.”
उनका कहना था कि बहुत से लोगों को अपनी एचआईवी स्थिति की वजह से भी कामकाज और रोज़गार के दौरान Promotion यानी प्रोन्नति से या तो वंचित रहना पड़ता है या फिर उनके साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव होता है.
इस रिपोर्ट को तैयार करने में Global Network of People Living with HIV ने भी मदद की है जिसे एड्स सम्मेलन AIDS-2018 में प्रस्तुत किया गया. ये सम्मेलन साल में दो बार होता है.
विश्व भर में स्वास्थ्य या विकास से सम्बन्धित किसी विषय या मुद्दे पर होने वाला ये सबसे बड़ा सम्मेलन होता है.