मानवाधिकारों के लिए आवाज़ पर ताला

मिस्र के राष्ट्रपति अल सीसी

महबूब ख़ान, संयुक्त राष्ट्र रेडियो

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने मिस्र में पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियाँ, उनसे गहन पूछताछ और उन्हें बन्दी बनाए जाने की घटनाओं पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है.

मिस्र सरकार के इस अभियान में जिन लोगों को निशाना बनाया गया है उनमें मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले Activist यानी कार्यकर्ता, ब्लॉग लिखने वाले और पत्रकार शामिल हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय OHCHR का कहना है कि साल 2013 में हुई जनक्रान्ति के बाद से गिरफ़्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की संख्या हज़ारों में हो सकती है.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदसानी का कहना था, “सरकार के इस अभियान का शिकार हुए लोगों की संख्या का सही अन्दाज़ा लगाना मुश्किल है. पिछले महीने से इस तरह के मामलों की तरफ़ ध्यान खींचना शुरू किया गया है. लेकिन ऐसा कोई तरीक़ा नहीं है जिससे अपने मानवाधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए गिरफ़्तार किए गए लोगों की सही संख्या का पता लगाया जा सके.”

“कुछ ऐसी ख़बरें आई हैं कि साल 2013 के बाद से मानवाधिकारों का इस्तेमाल करने वाले और अन्य लोगों के मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के लिए गिरफ़्तार किए गए लोगों की संख्या लाखों में हो सकती है. लेकिन इसकी पुष्टि करने का कोई ठोस तरीक़ा नहीं है.”

गिरफ़्तार और बन्दी बनाकर रखे गए लोगों में प्रख्यात ब्लॉग लेखक वाएल अब्बास और हातिम मोहम्मदैन शामिल हैं.

मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि बहुत सारे मामले ऐसे भी हैं जिनमें गिरफ़्तार किए जाने वाले लोगों को गिरफ़्तारी वारंट नहीं दिया जाता है और उनकी गिरफ़्तारी का कारण नहीं बताया जाता है.

यहाँ तक कि कुछ लोगों को तो सरकारी अधिकारियों की आलोचना करने वाले ट्वीट करने के लिए ही गिरफ़्तार कर लिया जाता है.