टिकाऊ विकास के लिए धन निवेश ज़रूरी

एशिया प्रशान्त क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग यानी ESCAP ने कहा है कि विकास के लिए धन ख़र्च करना अब भी इस क्षेत्र की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली के लिए बुनियादी प्राथमिकता है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सोमवार को नई दिल्ली में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया – प्रशान्त क्षेत्र में साल 2017 में अच्छी-ख़ासी प्रगति दर्ज की गई जिसके साल 2018 के दौरान भी जारी रहने के अनुमान है.

रिपोर्ट कहती है कि इस प्रगति को जारी रखने के लिए धन निवेश भी जारी रखना होगा.

एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के देशों से मौजूदा अनुकूल अर्थिक हालात का फ़ायदा उठाने का आहवान करते हुए कहा गया है कि अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने की कोशिश करें.

साथ ही आर्थिक कमज़ोरियों की निशानदेही करके उनमें सुधार लाने, विकास में लोगों की ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी बढ़ाने और टिकाऊ अर्थव्यवस्था क़ायम करने के लक्ष्यों पर काम करें.

इस रिपोर्ट को जारी करने के लिए ESCAP और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनोमिक रिलेशन्स (ICRIER) ने नई दिल्ली में संयुक्त रूप से समारोह आयोजित किया.

इस मौक़े पर एशिया – प्रशान्त क्षेत्र का एक वार्षिक आर्थिक और सामाजिक सर्वे भी पेश किया गया.

इसमें अनुमान लगाया गया है कि साल 2018 के दौरान आर्थिक वृद्धि 6 फ़ीसदी रहेगी.

हालाँकि साल 2017 के दौरान इस क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि 6.4 प्रतिशत थी.

साल 2019 के दौरान ये आर्थिक वृद्धि दर 6.2 फ़ीसदी रहने का अनुमान पेश किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार भारत में आर्थिक हालात में धीरे-धीरे सुधार आने का अनुमान पेश किया गया है.

रिपोर्ट कहती है कि प्राइवेट क्षेत्र में निवेश बढ़ने के साथ-साथ कोर्पोरेट क्षेत्र जी एस टी की बढ़ी दरों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा है.

साथ ही बुनियादी ढाँचे पर ख़र्च बढ़ाया जा रहा है और बैंक क्षेत्र में सरकारी मदद की बदौलत हालात में सुधार देखा जा रहा है.

एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग यानी ESCAP की दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी दफ़्तर की मुखिया डॉक्टर रूपा चन्दा ने रिपोर्ट की मुख्य बातें मीडिया के सामने पेश कीं.

डॉक्टर रूपा चन्दा का कहना था कि एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के देशों में अगरप टिकाऊ और सबकी भागीदारी वाला विकास सुनिश्चित करना है तो विकास क्षेत्र में वित्तीय संसाधन लगाते रहना होगा.

इसके साथ ही मुख्य धारा के क्षेत्रों में संसाधनों की उपलब्धता और कुशलता बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा बढ़ानी होगी.

इसके अलावा नीति निर्माण में पर्यावरण संरक्षण के तरीक़ों पर भी ध्यान देना होगा.