संयुक्त राष्ट्र के तीन संगठनों ने कहा है कि दुनिया भर में बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाओं का असर कम होने यानी Antimicrobial Resistance का मुक़ाबला करने में कुछ प्रगति तो हुई है.
लेकिन इन संगठनों ने चेतावनी देने के अन्दाज़ में ये भी कहा है कि अभी वांछित सफलता नहीं मिली है और चुनौती और कामयाबी के बीच के अन्तर को दूर करने के लिए तुरन्त ठोस क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है.
संयुक्त राष्ट्र के तीन संगठनों – खाद्य और कृषि संगठन – एएफ़ओ, World Organisation for Animal Health (OIE) और विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने मिलकर ये रिपोर्ट तैयार की है जो बुधवार, 18 जुलाई को जारी की गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि Antimicrobial Resistance यानी ए एम आर इंसानों के स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लिए एक गम्भीर ख़तरा पेश करती है.
इस रिपोर्ट में 154 देशों में Antimicrobial Resistance यानी ए एम आर की स्थिति की निगरानी करके निष्कर्ष और सिफ़ारिशें पेश की गई हैं.
रिपोर्ट कहती है कि इन देशों में ए एम आर की चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए बहुत सी कोताहियाँ और कमियाँ देखने को मिली हैं.
इनमें से कुछ देश तो ऐसे हैं जो ए एम आर की चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए क़रीब चार दशकों से काम कर रहे हैं.
इनमें कुछ देश तो यूरोपीय क्षेत्र के भी हैं.
जबकि कुछ देशों ने इस ख़तरे का सामना करने के लिए ठोस प्रयास हाल ही में शुरू किए हैं.
रिपोर्ट में जानकारी सामने आई है कि 105 देशों ने अपने यहाँ इंसानों में ऐसे संक्रमणों की निगरानी के लिए ठोस प्रणाली और व्यवस्था क़ायम की है जिन पर दवाओं का असर नहीं होता है.
123 देशों ने एंटीबॉयोटिक्स दवाओं की बिक्री को नियंत्रित और नियमित करने के लिए ठोस नीतियाँ बनाई हैं.
अनेक देशों में बहुत से लोग एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल गम्भीरता से नहीं करते और बहुत जल्दी-जल्दी ये दवाएँ बदलते रहते हैं जिस वजह से उनका असर कम होता जाता है.
लेकिन गहरी चिन्ता की बात ये है कि इन नीतियों को लागू करने में अब भी कहीं ना कहीं कोताही और कमियाँ मौजूद हैं जिस वजह से नियंत्रित एंटीबॉयोटिक्स दवाएँ अब भी लोगों को आसानी से मिल जाती हैं.
खुले बाज़ारों में मिलने वाली इन एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के इस्तेमाल और उनकी मात्रा की निगरानी करने का कोई तरीक़ा लागू नहीं किया जाता है.
रिपोर्ट ये भी कहती है कि एंटीबॉयोटिक्स दवाओं को बेअसर होने से बचाने के लिए और ज़्यादा धन निवेश करने की ज़रूरत है.
ख़ासतौर से पशुओं के स्वास्थ्य और खाद्य पदार्थों के उत्पादन क्षेत्र यानी खेतीबाड़ी में भी.
अक्सर देखा गया है कि लोग जल्दी और अच्छी फ़सल हासिल करने के लिए खेतों में बहुत ज़्यादा रसायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं.
जब ये चीज़ें इंसान और जानवर खाते हैं तो उनमें पहले से ही ये रसायनिक पदार्थ मौजूद होने की वजह से बहुत सी एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का असर नहीं होता है.
खाद्य और कृषि संगठन के महानिदेशक होज़े ग्रेज़ियानो डी सिल्वा का कहना था कि तमाम देशों को कृषि से जुड़े तमाम क्षेत्रों में रसायनिक पदार्थों और एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के बेतहाशा और ग़ैर-नियंत्रित तरीक़े से इस्तेमाल को रोकने के लिए सख़्त उपाय करने होंगे.