एफ़जीएम पर ब्रिटेन सरकार भी सक्रिय

एफ़ जी एम से लड़कियों और महिलाओं की रूह हिल जाती है

ब्रिटेन सरकार महिला ख़तना पर पाबन्दी लगाने के लिए एक क़ानून के मसौदे पर विचार कर रही है. महिला ख़तना को अंग्रेज़ी में Female Genital Mutilation एफ़जीएम के नाम से ज़्यादा जाना जाता है. ये प्रथा मुख्य रूप से अफ्रीकी देशों और कुछ एशियाई देशों में प्रचलित है. भारत के भी महाराष्ट्र और गुजरात में रहने वाले कुछ मुस्लिम समुदायों में महिला ख़तना प्रचलित है. गुजराती मूल के जो कुछ समुदाय कुछ दशक या सदियाँ पहले अन्य देशों में चले गए थे, वहाँ भी महिला ख़तना की प्रथा का चलन देखा गया है.

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार दुनिया भर में लगभग बीस करोड़ ऐसी लड़कियाँ और महिलाएँ जीवित हैं जो महिला ख़तना की दर्दनाक और ख़तरनाक प्रक्रिया की शिकार हो चुकी हैं. संयुक्त राष्ट्र इस अमानवीय प्रथा को ख़त्म करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष 6 फ़रवरी को अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाता है. संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों में एफ़जीएम को पूरी तरह ख़त्म करने का लक्ष्य 2030 तक हासिल करने की मुहिम पर तेज़ी से काम किया जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतॉनियो गुटेरेश ने छह फ़रवरी को दिए एक कड़े संदेश  कहा कि महिला ख़तना मानवाधिकारों का क्रूर उल्लंघन है जो दुनिया भर में अनेक स्थानों पर अब भी बहुत सी लड़कियों और महिलाओं को शिकार बना रह है. महासचिव का कहना था, “महिला ख़तना लड़कियों और महिलाओं से उनका सम्मान छीनता है, उनके स्वास्थ्य को ख़तरे में डालता है और बेवजह तकलीफ़ पैदा करता है, यहाँ तक कि कुछ मामलों में तो मृत्यु हो जाने का भी ख़तरा रहता है.”

महासचिव एंतॉनियो गुटेरेश का कहना था कि महिला ख़तना दरअसल महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता वाली परंपराओं पर आधारित है. ये लड़कियों और महिलाओं की प्रगति संभावनाओं को सीमित करते हुए उनके अधिकारों की पूर्ति पर नकारात्मक असर डालता है.

महिला ख़तना पर ताज़ा घटनाक्रम को समझने से पहले आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि ये क्या चलन है और ये लड़कियों और महिलाओं को किस तरह प्रभावित करती है.

एफ़ जी एम प्रथा बहुत छोटी उम्र में भी लड़कियों को शिकार बना रही है. फ़ोटो – संयुक्त राष्ट्र

जिन समुदायों में महिला ख़तना की प्रथा प्रचलित है, उसके पीछे ये मान्यता काम करती है कि लड़की जब बचपन से निकलकर वयस्कता में दाख़िल होती है, यानी उसका शरीर प्रजनन क्षमता विकसित करता है तो उसे गन्दगी से निजात दिलाने के लिए महिला ख़तना ज़रूरी है. इस प्रथा को मानने वालों का कहना है कि लड़की का जननांग परिपक्वता की दहलीज़ पर क़दम रखते ही अपवित्र हो जाता है. इसलिए उन समुदायों की नज़र में लड़की को इस अपवित्रता से मुक्त करने के लिए ही महिला ख़तना करना ज़रूरी समझा जाता है.

एक अति क्रूर प्रथा

महिला ख़तना के तहत लड़कियों और महिलाओं के जननांग के कुछ हिस्सों को या तो काटकर हटा दिया जाता है या फिर उनमें कुछ बदला किया जाता है. और ऐसा ग़ैर-चिकित्सा कारणों से किया जाता है. यानी किसी बीमारी या अस्वस्थता की वजह से महिला ख़तना नहीं किया जाता है. ये समझा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की जान बचाने के लिए कोई चिकित्सा प्रक्रिया या ऑपरेशन वग़ैरा ज़रूरी समझा जाए, तो उसे करने में हिचक नहीं होनी चाहिए. मगर महिला ख़तना के लिए कोई चिकित्सीय आधार नहीं पाया गया है. यानी महिला चिकित्सा किसी लड़की या महिला की जान बचाने के लिए ज़रूरी नहीं होता. इसके उलट महिला ख़तना से लड़कियों और महिलाओं के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो जाता है.

अक्सर देखा गया है कि महिला ख़तना की प्रक्रिया के गुज़रने के बाद बहुत सी लड़कियों और महिलाओं को कई तरह का संक्रमण हो जाता है जो उनकी जनन प्रक्रिया में बाधक भी बन सकता है. महिला ख़तना के बाद अक्सर बहुत सी लड़कियाँ आगे चलकर यौन संबंधों में असुविधा महसूस करती हैं. यहाँ तक कि उनके माँ बनने की संभावनाओं पर भी अक्सर प्रतिकूल असर पड़ते देखा गया है.

महिला ख़तना चूँकि समुदायों की कुछ संकीर्ण मान्यताओं पर आधारित है, इसलिए जो लड़की या महिला इसे कराने से बचती है, उसे समुदायों और पूरे समाज में कम दर्जे का समझा जाता है. महिला ख़तना की प्रक्रिया चूँकि ख़ूब प्रचार करके और स्थानीय लोगों की भीड़ के दौरान की जाती है इसलिए पूरे समाज को जानकारी रहती है कि किस लड़की की ख़तना प्रक्रिया पूरी हुई है और किस की नहीं.

जो लड़की अगर व्यस्कता की दहलीज़ पर क़दम रखने के साथ ही महिला ख़तना की प्रक्रिया से नहीं गुज़रती, तो उसकी शादी में भी बाधाएँ खड़ी होती हैं. क्योंकि पुरुष और उनके परिवार (महिलाएँ भी) ऐसी लड़की से विवाह संबंध बनाने से बचते हैं. अक्सर देखा गया है कि एक महिला ने किशोर उम्र में महिला ख़तना नहीं कराया तो उसके विवाह में समस्या हुआ. आख़िरकार जब उसने 26 या 27 वर्ष की उम्र में महिला ख़तना की प्रथा का पालन किया तो उसे समुदाय और समाज में इज़्ज़त मिलने का अहसास हुआ. उसका ख़ुद भी कहना था कि इस प्रक्रिया के बाद उसके आत्मविश्वास में बहुत बढ़ोत्तरी हुई और उसे ज़्यादा सम्मान महसूस हुआ.

लेकिन इस प्रथा को रोकना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है, हालाँकि ख़ासी कामयाबी भी मिल रही है. महिला ख़तना की प्रथा यूरोपीय देशों में रहने वाले परिवारों और समुदायों में भी देखी जा रही है. ब्रिटेन में भी महिला ख़तना के कई मामले सामने आए हैं. कुछ मामलों में तो लड़की की उम्र सिर्फ़ एक महीना होने पर ही उसका ख़तना कर दिया जाता है. इस प्रथा से गुज़रने वाली लड़कियों और महिलाओं का कहना है कि महिला ख़तना का असर सिर्फ़ एक दिन नहीं, बल्कि पूरी उम्र उनके दिलो-दिमाग़ पर रहता है जिससे एक इंसान के रूप में उनका आत्मविश्वास हमेशा नकारात्मक रूप में प्रभावित होता है.

एफ़जीएम के पीछे कोई चिकित्सा कारण नहीं होते हैं. फ़ोटो – संयुक्त राष्ट्र

ब्रिटेन में महिला ख़तना की प्रक्रिया ग़ैर-क़ानूनी है और ऐसा करने वालों को न्याय के कटघरे में लाने की कोशिश की जा रही है. अनुमानों के अनुसार इंग्लैंड में भी क़रीब एक लाख 37 हज़ार ऐसी लड़कियाँ और महिलाएँ हैं जो जबरन एफ़जीएम यानी महिला ख़तना की शिकार हुआ हैं. ज़ाहिर सी बात है कि अक्सर माता-पिता ही अपनी बच्ची का ख़तना (एफ़जीएम) कराना चाहते हैं. अक्सर ये भी देखा गया है कि जो माता-पिता अपनी मर्ज़ी से अपनी बच्ची का ख़तना नहीं कराना चाहते वो संबंधियों और समुदायों के दबाव में कराने के लिए मजबूर होते हैं क्योंकि अगर वो ऐसा ना कराएँ तो उन्हें बहिष्कार सहित अन्य तरह की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

सरकार ने कसी कमर

ब्रिटेन के गृह मंत्री साजिद जावेद ने सख़्त शब्दों में कहा है कि सरकार एफ़जीएम के मामलों का पता लगाने और इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के लिए पूरी मुस्तैदी से काम ले रही है. एफ़जीएम को रोकने के लिए काम करने वाले मानधिकार कार्यकर्ताओं व सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अक्सर महिला ख़तना बहुत छुपाकर किया जाता है. इसलिए सरकारी अधिकारियों के लिए उनका पता लगाना आसान नहीं है क्योंकि परिवारों और घनिष्ठ समुदायों के बीच पहुँच बनाना भी लगभग असंभव है, जब तक कि उन समुदायों का ही कोई व्यक्ति इस बारे में ठोस जानकारी ना दे.

स्कॉटलैंड के चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि पिछले क़रीब दो वर्षों के दौरान 230 मौक़ों पर महिला ख़तना (एफ़जीएम) की शिकार लड़कियों व महिलाओं का इलाज किया गया है.

ब्रिटेन में सभी राजनैतिक दलों की तरफ़ से इस क्रूर प्रथा को रोकने के लिए मुहिम छेड़ी गई है और पूरी संसद इस मुद्दे पर एकजुट नज़र आती है. कुछ सांसद ज़्यादा मुखर होकर महिला ख़तना के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं और उनका कहना है कि किसी को भी इस सन्देह में नहीं रहना चाहिए कि महिला ख़तना बाल यौन शोषण है और ये बिल्कुल ग़ैर-क़ानूनी है.  

ब्रिटेन में अभी तक अन्य क़ानूनों के तहत एफ़जीएम को क्रूर और अमानवीय माना जाता था और महिला ख़तना करने वालों को अनेक क़ानूनों के तहत दंडित किया जाता था.

लेकिन अब ब्रिटेन की संसद ख़ासतौर पर Anti FGM यानी महिला ख़तना विरोधी क़ानून बनाने की तैयारी कर रही है. इस विधेयक के क़ानून बनने से पहले ही कुछ विवाद भी खड़ा हो गया जब सत्तारूढ़ दल के ही एक सांसद सर क्रिस्टोफ़र शोपे ने विधेयक पर कुछ आपत्तियाँ दर्ज कराईं. हालाँकि सर क्रिस्टोफ़र ने यह सफ़ाई दी है कि उनका मक़सद इस विधेयक के क़ानून बनने की राह में रोड़ा अटकाना नहीं, वो तो बस ये चाहते हैं कि कोई भी विधेयक बहुत सोच-समझकर और ठोस शब्दावली का इस्तेमाल करके बनाया जाना चाहिए और उस पर संसद में और हर संभव मंच पर विस्तृत बहस भी होनी चाहिए. लेकिन सर क्रिस्टोफ़र अपने इस रुख़ पर व्यापक आलोचनाओं का शिकार हुए हैं. सत्तारूढ़ कंज़रवेटिव पार्टी के ही कुछ मंत्रियों और सांसदों के साथ-साथ महिला ख़तना विरोधी कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भी इस विधेयक को जल्दी क़ानून बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.