‘तुर्की में इमरजेंसी के दौरान ज़्यादतियाँ’

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय OHCHR ने कहा है कि तुर्की में पिछले 18 महीनों से चले आ रहे आपातकाल यानी Emergency के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लाखों लोगों को ऐसी गतिविधियों का शिकार बनाया गया है जो मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में परिभाषित होती हैं.

इनमें लोगों को टॉर्चर करना यानी उन्हें प्रताड़ित करना, arbitrary detentions यानी मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाना, लोगों को विचार अभियक्त करने और संगठन बनाने के अधिकारों से वंचित करना शामिल है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने मंगलवार को चेतावनी के अन्दाज़ में कहा कि तुर्की में अगर आपातकाल को और बढ़ाया गया तो सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने और संस्थानों के लिए दूरगामी नुक़सान हो सकते हैं.

रिपोर्ट में हवाला दिया गया है कि 18 महीनों के आपातकाल के दौरान क़रीब एक लाख 60 हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. एक लाख 52 हज़ार सरकारी अधिकारियों यानी Civil Servants को बर्ख़ास्त किया गया.

इनमें से ज़्यादातर को क़ानूनी अधिकार दिए बिना ही मनमाने तरीक़े से बर्ख़ास्त किया गया.

बहुत से शिक्षकों, न्यायविदों और वकीलों को भी बर्ख़ास्त किया गया, या फिर उन पर मुक़दमे चलाए गए. पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया है, निष्पक्ष मीडिया संस्थानों को बन्द किया गया है और बहुत सी वेबसाइटों को भी बन्द कर दिया गया है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ज़ायद राआद अल हुसैन का कहना है कि सबसे ज़्यादा दिल दहला देने वाली बात ये है कि क़रीब 100 गर्भवती महिलाओं को बन्दी बनाया गया है और उन्हें उनके बच्चों से जबरन और हिंसक तरीक़े से अलग किया गया है. ये कार्रवाई बहुत निर्दयी, क्रूर और आधुनिक दौर में अस्वीकार्य है.

ये पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि ऐसी गतिविधियों से देश को सुरक्षित बनाने में बिल्कुल भी मदद नहीं मिलेगी.